एक ताजमहल मैंने भी बनाया है,
अपनी खुशियों की कब्र पर उसे सजाया है। संगमरमर जैसे खूबसूरत मगर सख्त :
मेरे दिल के टुकड़े हज़ार;
अपने अरमानों की जलती लौ की चमक
से उन टुकड़ों को चमकाया है;
फिर इन्हीं को गम से जोडक़र,
इनसे इमारत को खड़ा कराया है।
इन टुकड़ों पर वक्त के जुल्मों की यादों
की विशाल और गहरी कारीगरी;
गर्मी की तपती धूप में भी
महल के बीचों-बीच एक अजीब सी ठंडक:
शायद लहराती ठंडी आहों का कमाल;
प्रवेश द्वार पर सुसज्जित
बहती अनंत अश्रुधार;
दर्द की हवाओं को सहते
मजबूरी के खंभे चार;
चारों ओर बची-खुची उम्मीद की
लहकती हरियाली – ज़िंदा रहने को बेकरार।
वह देखो, दुनिया इस ताजमहल को देखने आई है !
महल का हर हिस्सा चर्चा का विषय
बन गया है, सिवाय उस कब्र के,
जहां दबी है मृत खुशियां –
उसमें किसी की रुचि ही नहीं है।
कोई भी नहीं करता सवाल –
कैसे हुआ उनका अंत:काल ?
सब एक ओर ताक रहे हैं –
उस विशाल कारीगरी का मज़ा ले रहे हैं;
प्रवेश द्वार पर बहती धारा की
तस्वीरें खींच रहे हैं;
महल की ठंडक में आनंद महसूस कर रहे हैं।
कितने बेरहम हैं यह लोग,
किसी के दुख पर, सुख रहे हैं भोग !
आखिर कब तक चलेगा यह सिलसिला ?
यह कोई पर्यटक – स्थल नहीं,
दुनिया का पहला अजूबा नहीं,
पर चलो, कोई बात नहीं !
यह ताजमहल तो नश्वर है,
एक दिन मुर्झाएगा,
दुनिया की नजऱों से ओझल हो जाएगा।
फिर क्या करेंगे यह जग वासी ?
किसके आंसुओं से अपनी प्यास बुझाएंगे, किसकी आहों से शीतलता पाएंगे ?
या फिर ढूँढेंगे एक बार फिर,
किसी और की खुशियों की कब्र पर बना
एक और ताजमहल,
पर्यटक – स्थल बनाने के लिए,
अपना दिल बहलाने के लिए!
रचयिता – सलोनी चावला
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