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एक और ताजमहल

प्रसिद्ध कवि सलोनी चावला ने लिखी ताजमहल पर लिखी अपनी रचना..

एक ताजमहल मैंने भी बनाया है,
अपनी खुशियों की कब्र पर उसे सजाया है। संगमरमर जैसे खूबसूरत मगर सख्त :
मेरे दिल के टुकड़े हज़ार;
अपने अरमानों की जलती लौ की चमक
से उन टुकड़ों को चमकाया है;
फिर इन्हीं को गम से जोडक़र,
इनसे इमारत को खड़ा कराया है।
इन टुकड़ों पर वक्त के जुल्मों की यादों
की विशाल और गहरी कारीगरी;
गर्मी की तपती धूप में भी
महल के बीचों-बीच एक अजीब सी ठंडक:
शायद लहराती ठंडी आहों का कमाल;
प्रवेश द्वार पर सुसज्जित
बहती अनंत अश्रुधार;
दर्द की हवाओं को सहते
मजबूरी के खंभे चार;
चारों ओर बची-खुची उम्मीद की
लहकती हरियाली – ज़िंदा रहने को बेकरार।
वह देखो, दुनिया इस ताजमहल को देखने आई है !
महल का हर हिस्सा चर्चा का विषय
बन गया है, सिवाय उस कब्र के,
जहां दबी है मृत खुशियां –
उसमें किसी की रुचि ही नहीं है।
कोई भी नहीं करता सवाल –
कैसे हुआ उनका अंत:काल ?
सब एक ओर ताक रहे हैं –
उस विशाल कारीगरी का मज़ा ले रहे हैं;
प्रवेश द्वार पर बहती धारा की
तस्वीरें खींच रहे हैं;
महल की ठंडक में आनंद महसूस कर रहे हैं।
कितने बेरहम हैं यह लोग,
किसी के दुख पर, सुख रहे हैं भोग !
आखिर कब तक चलेगा यह सिलसिला ?
यह कोई पर्यटक – स्थल नहीं,
दुनिया का पहला अजूबा नहीं,
पर चलो, कोई बात नहीं !
यह ताजमहल तो नश्वर है,
एक दिन मुर्झाएगा,
दुनिया की नजऱों से ओझल हो जाएगा।
फिर क्या करेंगे यह जग वासी ?
किसके आंसुओं से अपनी प्यास बुझाएंगे, किसकी आहों से शीतलता पाएंगे ?
या फिर ढूँढेंगे एक बार फिर,
किसी और की खुशियों की कब्र पर बना
एक और ताजमहल,
पर्यटक – स्थल बनाने के लिए,
अपना दिल बहलाने के लिए!
रचयिता – सलोनी चावला

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