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हिन्दी – मेरी मैया

( हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में ) सलोनी चावला

सलोनी चावला ने की – ‘हिन्दी भाषा’ की ‘माँ’ से तुलना
हिन्दी तो भाषा है, क्यों कहें इसे हम अपनी मैया,
सिर्फ मैया ! न पिता, न बहन, न भैया ?
मैं बताती हूं क्यों कहें इसे हम अपनी मैया।
जैसे मां के भीतर होती है संरचना, एक मानव की, वैज्ञानिक रूप से,
उसी तरह तो बनी है यह हिंदी भाषा भी, पूरे वैज्ञानिक रूप से।
तो क्यों न कहें हम हिन्दी भाषा को अपनी मैया !
यह वह भाषा है जहाँ ‘स’ – ‘स’ है और ‘क’ – ‘क’ है।
यह विज्ञान है – यहाँ ‘अ’ – ‘अ’ है और  ‘आ’ – ‘आ’ है।
यहाँ हर स्वर, हर व्यंजन की एक अलग स्थगित पहचान है,
जैसे सब रिश्तों में माँ की एक अलग स्थगित पहचान है।
तो क्यों न कहें हम हिन्दी भाषा को अपनी मैया !
हिन्दी वह भाषा नहीं, जहाँ कुछ अक्षर लिखे तो जाएँ, पर बोलने में हो जाएँ लुप्त – गुप्त,
हिन्दी, माँ की तरह पारदर्शी है, एक आईना है – ना कुछ गुप्त, ना कुछ लुप्त।
तो क्यों न कहें हम हिन्दी भाषा को अपनी मैया !
हिन्दी गणित है, यहाँ दो और दो चार है, तो हम रास्ता भटकेंगे क्यों ?
किसी भी शब्द का उच्चारण किसी से भी पूछेंगे क्यों ?
जैसे माँ हमें सही राह दिखाती है, और डगमगाने नहीं देती,
हिन्दी भाषा भी हमें सही उच्चारण देती है, डगमगाने नहीं देती।
तो क्यों न कहें हम हिन्दी भाषा को अपनी मैया !
सदस्यों को एक – दूसरे से जोड़ कर, माँ एक प्यारा परिवार बनाती है,
और अक्षरों की सन्धि कर के, हिन्दी भाषा   खूबसूरत शब्द बनाती है।
रिश्तों को जोड़ने की कला जैसे माँ में है,
अक्षरों की सन्धि की कला हिन्दी भाषा में है।
तो क्यों न कहें हम हिन्दी भाषा को अपनी मैया !
हिन्दी भाषा में समाए हैं माँ के सब गुण,
क्या गणित, क्या विज्ञान, क्या कला के गुण !
तो क्यों न कहें हम हिन्दी भाषा को अपनी मैया !
जी हाँ हिन्दी हमारी मैया है,
हिन्दी भाषा को प्रणाम, जय हिन्दी !
रचयिता : सलोनी चावला
(यह कविता काव्य हिन्दुस्तान अंतरराष्ट्रीय साहित्य समूह के विराट जूम कवि सम्मेलन में 15 सितंबर को प्रस्तुत की गई तथा अध्यक्ष महोदय, श्री सुनील दत्त मिश्रा जी द्वारा काफी सराही गई।)

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