क्या हमने अपनी मां को समझा ?
जब हम उसके गर्भ में थे :
कितनी तकलीफ़ उठाई होगी उसने….
कितनी उल्टियां की होंगी,
कितने चक्कर आए होंगे…..
कभी-कभी खाने का मन
भी नहीं किया होगा….
क्या हमने कभी समझा ?
छोटे पालने में सोते होंगे –
आधी रात को कितनी बार
उसकी नींद खराब की होगी….
कभी नैप्पीज़ बदलने के लिए,
कभी पानी पिलाने के लिए,
कभी अचानक नींद
से जग जाने के लिए….
कितनी तकलीफ़ होती होगी उसे….
क्या हमने कभी समझा ?
फिर स्कूल गए हम –
हमारा बार-बार सवाल करना….
और हज़ार सवालों के जवाब देना….
कितनी उसे दिक्कत आती होगी….
क्या हमने कभी समझा ?
कभी उसकी साड़ी खींचना,
कभी कोई चीज़ तोड़ देना,
कभी ज़िद करके कुछ
ऐसी मांग कर बैठना,
जो उसकी तौफ़ीक में न हो….
कितनी मुश्किल होती होगी
कि वह कैसे हमें समझाए….
क्या हमने कभी समझा ?
स्कूल जाने के लिए सुबह पाँच
बजे उठकर हमें तैयार करना,
नाश्ता बनाना, हमारे पिता के
लिए साथ का खाना बनाना,
हमारे लिए साथ का खाना बनाना :
बिना नहाए, भूखे – प्यासे रहकर….
क्या हमने कभी समझा ?
हम सबको भेज कर स्कूल, ऑफिस,
नहा-धो कर खाना खाना,
या फिर इतनी थक गई कि
आराम करने के बाद खाना….
कभी सास-ससुर को खाना देकर,
उसके बाद कहीं नाश्ता नसीब होना….
क्या हमने कभी समझा ?
कब उसे नहाने का वक्त
मिलता होगा – शायद
कामवाली से काम कराने के बाद,
शायद दोपहर को, शायद सुबह
जल्दी अपनी नींद काट कर
चार बजे उठकर नहाना….
क्या हमने कभी समझा ?
हमारे लौटने से पहले से
ही खाना तैयार रखना,
चाहे कितनी है थकी हो….
प्रेस वाला, सब्ज़ी वाला,
फल वाला : सब को देखकर
वक्त पर खाना तैयार रखना….
क्या उसके इस समय प्रबंधन
कला को हमने कभी समझा ?
शाम होने के बाद हमें सुलाना,
हमारा होमवर्क करवाना, अपनी
तो जैसी दुनिया ही भुला देना….
क्या उसका मन करता है :
किसी के साथ गप्पें मारने का,
कहीं पड़ोस में जाने का, क्या उसे
समय मिल भी पाता है या नहीं….
क्या हमने कभी समझा ?
हमारी पढ़ाई मे मदद करना….
सास ससुर को चाय देना….
शाम को फिर से हमारे कपड़े
बदलकर, कभी खेलने भेजना,
और साथ में ध्यान रखना, कि
हम किसके साथ खेल रहे हैं,
कोई लड़ाई-झगड़ा हो गया
बच्चों में, तो वह सुलझाना….
और पति के आने से पहले
चाय-नाश्ता तैयार रखना….
क्या हमने कभी समझा ?
शाम को चाहे कितने भी
थकान क्यों ना हो, चाहे कितनी
तकलीफ़ों से क्यों ना गुजऱी हो,
तबीयत ठीक हो या ना हो,
लेकिन पति के आने पर मुस्कुरा
कर उसका स्वागत करना,
अपने तकलीफ़ों को छुपा कर……
क्या हमने कभी समझा ?
रात के खाने की वक्त पर तैयारी
करना कि कहीं देर ना हो जाए….
सुबह पति को फिर ऑफिस जाना है,
बच्चों को भी फिर स्कूल जाना है,
पति के कपड़े निकाल कर रखना….
हमारे कपड़े निकाल कर रखना,
हमारा स्कूल बैग तैयार करना….
रात को भोजन के समय, खुद
को साथ खाने का समय मिलना
या फिर बाद में अकेले खाना….
क्या हमने कभी समझा ?
अपने सब शौक दफ्ऩ कर देना….
और सिर्फ़ ग्रहस्थी को महत्व देना….
शायद उसे कभी नौकरी करने की
इच्छा भी रही हो और पति और
सास-ससुर ने नौकरी न करने दी….
और उस इच्छा को दबाकर रखना….
क्या हमने कभी समझा ?
शायद उसे कभी नृत्य या संगीत
सीखने का शौक हुआ होगा….
शायद पति और सास-ससुर
ने मना कर दिया होगा कि बच्चों का
ध्यान रखना है, घर-ग्रहस्थी पहले है….
कभी उसने शौक पूरा न किया हो
नृत्य का, संगीत का, चित्रकला का,
या अपना कोई काम करने का….
और उसने अपना सब कुछ :
अपनी ज़िंदगी, अपने शौक :
सब बलिदान कर दिया सिर्फ़ पति,
बच्चों और सास-ससुर के लिए….
क्या हमने कभी समझा ?
वह माँ है – ईश्वर का दूसरा रूप :
अपना सब कुछ न्यौछावर करके
अपनी नौकरी छोडक़र हमें
नौकरी के लायक बनाना….
शायद खुद आगे पढऩा चाहती हो,
मगर अपनी पढ़ाई छोडक़र हमारी
पढ़ाई में सदा योगदान देते रहना….
अपनी शादी अच्छी रही हो या नहीं,
लेकिन ध्यान रखना कि बच्चों
की शादी अच्छी जगह हो जाए….
क्या हमने कभी समझा ?
अचानक मेहमान या रिश्तेदारों
के आ जाने पर, बिना दिनचर्या
बिगाड़े, उनकी पूरी आवभगत
करने का समय निकालना
ताकि किसी को शिकायत
का मौका ही न मिले ….
क्या हमने कभी समझा ?
पति कैसा भी हो, उसकी लम्बी उम्र
के लिए तीज – करवाचौथ रखना,
और खुद सुहागन ही मरना चाहना….
मुर्झाई उम्र में भी खुशबू फैलाना,
बच्चे पूछें या न पूछें, फिर भी
उनपर निश्छल प्यार लुटाना,
बिन मांगे उनके हित में मश्वरा देना,
जहाँ से रुख़सत होने से पहले,
उनपर भरपूर आशीश बरसाना….
क्या हमने कभी समझा ?
इतनी लम्बी गाथा लिखी मैंने :
इसमे से किसी एक खूबी के
बारे में भी सोचा है कभी हमने….
बताओ, मुझे बताओ – क्या आप
ने अपनी माँ को कभी समझा ?
क्या हमने अपनी माँ को समझा ?
रचयिता – डॉक्टर सलोनी चावला