प्रसिद्ध लेखिका डॉ. सलोनी चावला ने पर्यावरण संरक्षण पर कविता लिखकर यह दर्शाया है कि पर्यावरण संरक्षण का अभाव किस प्रकार मनुष्य के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के अलावा, प्राकृतिक सौंदर्य, कला तथा मानव और प्रकृति के खूबसूरत संबंध को तहस-नहस कर सकता है। उन्होंने अपनी कविता से कुछ इस प्रकार संदेश दिया है…
नहीं दिखेगा यह अंबर फिर नीला;
न वायु में होगी बसंत की सुगंध;
लाएगा कौन फूलों का संदेश –
जब बंदी बनेगी धुएँ की, पवन?
ओझल होंगे चित्रकारों के रंग –
प्रकृति के मिटते हुए रंगों के संग।
तरसेगा राही दोपहर में छाया,
जब होंगे न पीपल, गुलमोहर, न बरगद;
धीमी पड़ेगी कलमों की रफ़्तार,
जब रहेगी न चांदनी कविता का आधार।
भूमंडल बन जाएगा –
तुम्हारे ज़ुल्मों का आईना,
मुर्झाया सौंदर्य – जो बोलेगा
तुम्हारे ही कर्म :
अपने ही लहू में घोला वह विष,
अपनी ही जीवनदायिनी का अपमान –
कर देगा बर्बाद तुम्हें………
“एक दिन”, अपने ही संग।
रचयिता – डॉक्टर सलोनी चावला
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