प्रसिद्ध लेखिका डॉ. सलोनी चावला ने पर्यावरण संरक्षण पर इस दूसरी कविता में यह दर्शाया है कि पर्यावरण संरक्षण का अभाव किस प्रकार मनुष्य के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के अलावा, प्राकृतिक सौंदर्य, कला तथा मानव और प्रकृति के खूबसूरत संबंध को तहस-नहस कर सकता है। उन्होंने अपनी कविता से कुछ इस प्रकार संदेश दिया है।
अनजान है कुदरत की हर शय,
अनजान यह अंबर-जमीं हैं,
नहीं जानते कि यह कितने
सुंदर, यह कितने हसीं हैं।
मेरी नजऱों के आईने में,
नजऱ तो डाल कर देखें,
रूप-रंग में कैद हैं जिनकी,
उन चित्रों में झांक कर देखें।
इनकी तस्वीर खिंची हो न जिसमें,
कैमरा ऐसा कोई नहीं है,
नहीं जानते कि यह कितने
सुंदर, यह कितने हसीं हैं।
जिनकी अल्फ़ाज़ों में इनकी चर्चा,
उन नज़्मों को पढक़र तो देखें,
जिन लेखों में दम है इन्हीं से,
उनका दीदार करके तो देखें।
शायरी इन पर की हो न जिसने,
शायर ऐसा कोई नहीं है,
नहीं जानते कि यह कितने
सुंदर, यह कितने हसीं हैं।
वह राग, वह गज़लें, वह नगमे,
बसी जिनमें सांसें इन्हीं की,
एक बार सुने उन धुनों को,
बनी हैं जो पहचान इन्हीं की।
संगीत के कितने ही साज़ों
की काया-रचयिता यही हैं,
उतरे हों न यह जिस कला में,
कला ऐसी कोई नहीं है,
नहीं जानते कि एक कितने
सुंदर, यह कितने हसीं हैं।
पूछें उन तड़पते दिलों से, गम
से जख़़्मी हुई जिनकी झोली,
इनका दीदार करे उनकी मरहम,
उनके मन में सजाकर रंगोली।
ढूंढे कोई स्वर्ग कहां पर,
स्वर्ग के सारे मोती यही हैं,
नहीं जानते कि यह कितने
सुंदर, यह कितने हसीं हैं।
रचयिता – डॉक्टर सलोनी चावला
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