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द्वार खोल दे जगदंबे

-सलोनी चावला द्वारा रचित नवरात्रि स्पेशल कविता

माता के मन का द्वार कोई बटन नहीं, जो दबाया और खुल गया,
इस द्वार को खोलने के लिए हमें हजारों पुण्य कमाने होंगे।
अपनी आत्मा में माँ का आशीश भरने के लिए, पहले अपनी आत्मा में से भरे पाप हटाने होंगे।
माँ तो माँ है – प्यार दे ही देगी, मगर,
हम इस लायक हैं, यह संस्कार भी जताने होंगे।
जितने दुष्कर्मो से माँ का दिल छलनी किया है, उन जख्मों पर मरहम भी तो लगाने होंगे।
सिर्फ उपवास कर लेने से नहीं हो जाती पूजा, माता को दिए गए वचन भी तो निभाने होंगे।
मत समझो इतना सस्ता माँ के दरबार को,
इस रास्ते में अपने पैरों पर कांटे भी चुभाने होंगे।
चढ़ा लो सारी दुनिया के फूल-फल मंदिरों मे,
माँ के मन का द्वार खोलने के लिए अच्छे कर्म चढ़ाने होंगे।
जगदंबा जरूर खोलेगी अपने मन का द्वार हमारे लिए,
कुछ कदम वह उठाएगी, और कुछ हमें उठाने होंगे।
जय माता दी
रचयिता – सलोनी चावला

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