
आज की रैना देखो चांद कैसे इतराने लगा,
आया करवा चौथ तो खुद से बतियाने लगा।
एक बरस के बाद फिर वह रात है आई,
365 रातों में, यह रात मुझको है भाई।
सुहाग की लंबी उम्र, हर सुहागन मांगती,
पर सुहाग से पहले करती मेरी आरती।
वैसे तो लाखों शायर हैं दीवाने मेरे,
पर यूँ छत पर रोज कौन लगाता है फेरे।
शाम कटती है कर-कर के मेरा इंतजार,
व्रत टूटता है जब हो जाता मेरा दीदार।
इस त्यौहार से मैंने कितनी इज्जत है कमाई,
मेरे कारण कितने पतियों ने लंबी उम्र है पाई।
आज की रैना देखो चांद कैसे इतराने लगा,
आया करवाचौथ तो खूब मुस्काने लगा।
रचयिता – सलोनी चावला
