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“जिंदगी…कभी-कभी” होश में ले आती है….

प्रसिद्ध कवियत्री सलोनी चावला ने जिंदगी पर लिखी अपनी रचना

जिंदगी, कभी-कभी……
होश में ले आती है,
होश उड़ा भी जाती है।
जिंदगी, कभी – कभी……
जीवन के…..हैं रस्ते हज़ार,
किस पर हम, करें एतबार।
कुछ उलझन सुलझाती है,
कुछ उलझा भी जाती है।
जिंदगी, कभी – कभी……
कौन सा पल….. है मीत अपना,
कौन सा पल…… वैरी अपना,
कौन सा पल…… कैसा अपना।
रहती है खामोश कहीं,
कहीं बता भी जाती है।
जिंदगी, कभी – कभी…….
समझते रहे….. जिन्हें हम फूल,
वह थी अपनी…. बड़ी भारी भूल।
कभी भरोसा देती है,
कभी मिटा भी जाती है।
जिंदगी, कभी – कभी……
कितने हम…… सहे तूफां,
अपनी भी…… है थकती जां।
कभी तो आग लगाती है,
कभी बुझा भी जाती है।
जिंदगी, कभी – कभी……
दिल में हैं…… जो इतने गम,
किसको हम….. दिखाएं जख़म।
नमक छिडक़ भी जाती है,
मरहम लगा भी जाती है।
जिंदगी, कभी – कभी…….
जिंदगी….. के रूप अनेक,
एक ज़मीं….. हैं पौधे अनेक,
एक गगन…… हैं तारे अनेक।
ठोकर भी दे जाती है,
गले लगा भी जाती है।
जिंदगी, कभी – कभी……..
होश में ले आती है,
होश उड़ा भी जाती है।
जिंदगी, कभी – कभी…….
जिंदगी, कभी – कभी……
रचयिता – सलोनी चावला

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