मैंने देखी थी पापा की ममता, उनकी आखिरी सांसो में !
मैं बिस्तर पर पड़ी बीमार, बहुत बीमार, और पापा अस्पताल आई-सी-यू में !
आई-सी-यू में जाने से पहले, कपकपाते हाथों से मेरे माथे को सहलाना,
और कहना, रोते नहीं, चुप शाबाश मुझे पूरा विश्वास है तू बिल्कुल ठीक हो जाएगी।
सांस लेने में तकलीफ़, पैरों में भारी सूजन, फिर भी घरवालों से जिद करके मेरे कमरे में रात भर
कुर्सी पर बैठ कर सोना -कि कहीं रात को मुझे मदद की ज़रूरत ना पड़ जाए;
हांफते हुए सोफे पर बैठ कर मेरे डॉक्टर का इंतज़ार करना और पूछना कि मैं कब ठीक हो जाऊंगी;
आई-सी-यू के बेड पर रहकर भी हर रोज़, अपना दर्द बताने से पहले मेरा हाल पूछना;
आई-सी-यू में रहकर भी मेरी चिंता करना; डॉक्टर ने जवाब दे दिया !
अस्पताल से घर आकर, मौत से तीन दिन पहले भी मेरी चिंता करना;
ज़ुबान जवाब दे चुकी थी : हकलाते हुए मेरे बारे में पूछना;
मेरा उनकी हालत को देखकर रो पडऩा, और उनका यह समझना कि शायद मैं अपनी हालत पर रोई, और मुझे तोतली भाषा में इशारे से बोलना,
“ओना नहीं, ओना नहीं, तू तीत हो जाएदी”।
मौत से एक रात पहले मुझे याद करना,
“तलोनी तहाँ है?”
पर मैं उठ नहीं पाई : उनके कमरे तक जाने के लिए : बीमार थी –
सोचा : कल मिल लूंगी।
लेकिन वह कल आया ही नहीं :
सुबह मेरे जगने से पहले ही
चले गए छोड़ कर !
आंसुओं में लिख रही हूं यह कविता !
“पापा – वह सुनहरी किरण दिखाकर
आप क्यों दूर हो गए ?
रौशनी की चाह थी और तुम खो गए !
आई लव यू पापा !
रचयिता – सलोनी चावला
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